शाकाहारवाद | |||
इसलिये यही वह समय है जब हम अपने स्वास्थ्य को गंभीरतापूर्वक लें एवं शाकाहारी बनेंI यह सोचना एक गलत धारणा है कि यदि हम मांसाहारी भोजन (मांस, मछली एवं मुर्गी) नहीं करते हैं तो हमें एक उचित संतुलित आहार नहीं मिल रहा है तथा अपने आहार से मांसाहारी भोजन को पूरी तरह छोड़कर हम बीमार हो सकते हैंI इसके विपरीत, बहुत से अनुसंधानों एवं अध्ययनों ने यह दिखाया है कि शाकाहारी भोजन करने वाले व्यक्ति अधिल लंबी आयु तक जीते हैं एवं बहुत सी बीमारियों के प्रति कम प्रवृत्त होते हैं जिसके प्रति मांस खाने वालों की संभावना अधिक होती हैI मांसाहार महत्वपूर्ण रूप से प्रमुख चिरकालिक बीमारियों जैसे कि हृदय रोग, कैंसर, गुर्दा की बीमारी एवं अस्थि-सुषिरता को बढ़ाता हैI मांसाहार दूषणकारी तत्वों जैसे कि हारमोनों, वनस्पतिनाशकों, कीटनाशकों एवं प्रतिजैविकी से भरे होते हैंI चूँकि ये सभी जीवविष वसा में घुलनशील हैं, वे पशुओं के चर्बीदार मांस में एकत्रित होते हैं जिसे मांस भक्षण करने वाले व्यक्ति अपने शरीर में ग्रहण करते हैंI मांस भक्षण करने से हमारे शरीर एवं आत्मा पर होने वाले प्रभावों को रोकने एवं सोचने की जरूरत हैI यह शरीर में पशु आवृत्ति को बढ़ाता है एवं अधिक पशुवत प्रवृत्तियों जैसे कि क्रोध, काम लिप्सा, भय एवं हिंस्र आवेगों का परिचालन करता हैI मांसाहार भोजन में ऊर्जा मन एवं तंत्रिका तंत्र की अशुद्धता को बढ़ाता हैI यह हमारे शरीर में कोशिकाओं के बीच क्षय ऊर्जा को फैलाता है हमारे स्वर्ण क्षेत्रों में मृत्यु ऊर्जा को लाकर शरीर में उच्चतर प्राण के प्रवाह को कम करता हैI हमारे द्वारा भक्षण किये गये जीवों का जीवन हमारे तारामय शरीर को भय एवं मृत्यु के समय उनके कष्टों से संबंधित नकारात्मक भावनाओं से दबा देता हैI इसके अतिरिक्त, यह स्पष्ट है कि हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति गैर-मांसाहारी हैI हमारे दाँत अनाज एवं सब्जियों को पीसने के लिये सही हैं और न कि जानवरों के मांस को फाड़ने के लियेI मनुष्य की आंत नली मांसाहारी पशुओं की अपेक्षा अधिक लंबे होते हैं, कच्चे मांस जीवाणुओं से भरे होते हैं एवं इसे खाने वाले पशु को इसे शीघ्रतापूर्वक अपनी आंत से निकालना चाहिये, इसलिये चूँकि मनुष्य की आंत अधिक लंबी होती हैं इसके सभी जीवाणु शरीर में मांसाहारी पशुओं की अपेक्षा अधिक लंबे समय तक टिकते हैंI हमारी चयापचयी क्रिया मांस को तोड़ने एवं पचाने के लिये तैयार नहीं की गयी हैI स्वामीजी कहते हैं कि यह किसी के हृदय के लिये अतिसंवेदनशीलता की बात है कि यदि आपके हृदय में दया है तो कैसे आप केवल अपने पेट की भूख मिटाने के लिये एक निर्दोष पशु को मार सकते हैं? मनुष्य के रूप में हमें पशुओं के प्रति जागरूकता एवं दया बढ़ाना चाहिये क्योंकि वे भी ईश्वर की कृति हैं एवं उन्हें भी मनुष्यों के समान जीने का अधिकार हैI हमसे पशुओं एवं ग्रह के रखवाले एवं रक्षक न कि शोषक एवं हत्यारे होने का अभिप्राय हैI एक शाकाहारी आहार का चुनाव कर आप अनुकूलतम स्वास्थ्य एवं पशु साम्राज्य में अपने मित्रों के साथ खुशहाली एवं शान्ति के साथ वास करने का अनुभव कर सकते हैंI |
Thursday, June 11, 2015
shakahari bano
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